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Yayavar: Adhoore Ehsaas
by   Vimlok Tiwari (Author)  
by   Vimlok Tiwari (Author)   (show less)
Yayavar: Adhoore Ehsaas
Product Description

-:पुस्तक परिचय:-

यायावर: अधूरे एहसास-यह मात्र एक कविता संकलन नहीं, अपितु भावनाओं की उस यात्रा का साक्षी है, जिसे हम अनुभव तो करते हैं, पर शब्दों में पूर्णतः पिरो नहीं पाते। यह कृति उन अधूरे एहसासों का स्वरूप है, जो समय के प्रवाह में बहकर कहीं मौन हो जाते हैं।

आज, जब संबंध तात्कालिक हो चले हैं और भावनाएँ क्षणभंगुर, तब यह संग्रह संवेदनाओं के उन अनछुए पहलुओं को स्पर्श करता है, जो मन के किसी कोने में सहेजकर रख दिए गए थे। प्रेम, वियोग, संघर्ष, प्रकृति, समाज और राजनीति की जटिलताओं को स्पंदनशील अभिव्यक्ति देने का यह एक विनम्र प्रयास है।

एक यायावर मन की गहरी संवेदनाएँ, विचारों की अनुगूंज और शब्दों का यह ताना-बाना पाठकों को अपने अनुभवों से जोड़ने का प्रयास करता है-जहाँ हर कविता, एक नई अनुभूति, एक नया प्रतिबिंब बनकर उभरती है।


||प्रस्तावना||

यायावर : अधूरे एहसास

अक्सर जब किसी युवा कवि का संग्रह सामने आता है तो जैसे उस कवि का चेहरा भी सम्मुख आ जाता है। उसके जज्बात, उसके एहसास, उसके सुख, उसकी पीड़ा, उसकी हालत सब कुछ उसकी कविताओं में किसी न किसी रूप में प्रतिबिंबित होती है। ऐसे ही कवि हैं विमलोक तिवारी जिनका संग्रह `यायावर : अधूरे एहसास` यह बताता है कि हर व्यक्ति एक ऐसी यात्रा से गुजरता है जहां उसे बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभव होते हैं । संघर्ष के रास्ते होते हैं। मंजिल पर पहुंचने के क्रम में अनेक मोड़ मिलते हैं जिनसे जुड़कर जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार होता है। हर युवा कवि जैसे इस उम्र में प्रकृति से जुड़कर गीत गाता है। प्रेम के गीत, मोहब्बत के गीत, जोड़ने के गीत, टूटने के गीत... और इस क्रम में क्योंकि वह समाज का हिस्सा भी है, एक नागरिक भी है, अपनी युवा आंखों से वह समाज को देखता है तो वहां भी उसे कुछ अधूरापन दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में उसकी कविता समाज के क्रिटिक के रूप में भी सामने आती है । विमलोक तिवारी का संग्रह `यायावर अधूरे एहसास ` को पढ़ाते हुए मुझे ऐसा ही कुछ महसूस हुआ ।

मुझे हिंदी के सुधी आलोचक प्रभाकर श्रोत्रिय का यह कहा याद आता है कि किसी भी युवा कवि के पहले संग्रह को फूल की तरह उठाना चाहिए। उसका स्वागत करना चाहिए । उसकी कमियों को नजरअंदाज करना चाहिए। अगर उसमें कसावट कम भी है लेकिन अभिव्यक्ति का विस्तार सम्यक तो उसे उसी रूप में ग्रहण करना चाहिए। कविता साध्य नहीं, साधना है । एक कवि जीवन भर अपनी कविता को साधता है और हर अगली कविता उसके लिए एक चुनौती होती है। हर कविता एक नए संसार के साथ सामने आती है। एक नए अनुभव के साथ सामने आती है। एक नई पारिभाषिक के साथ सामने आती है। जीवन हर बार एक नए पृष्ठ के रूप में खुलता है एक कवि के सामने । हर बार जीवन को संसार को वह नई दृष्टि से देखता है या उसमें नई दृष्टि तलाश कर लेता है।

विमलोक तिवारी ने पग पग पर अपने निजी एहसास के साथ जीवन, समय, समाज और मानव व्यवहार को भी अपनी कविताओं के दायरे में रखा है। उनके साथ स्थाई आलंबन के रूप में प्रकृति तो है ही, जीवन के वे क्षण भी हैं जिन्हें एक कवि ही महसूस कर सकता है।

अपनी 71 कविताओं के इस संग्रह में विमलोक तिवारी ने युवा मन की वह तस्वीर भी सामने रखी है जिस तस्वीर की झलक किसी भी युवक के कवि-मन में देखी जा सकती है । रामावतार त्यागी ने एक कविता में लिखा है :

हम थे उदासियां थी

खामोश गुलमोहर था

हम दर्द भी न गाते तो क्या बयान करते

जाहिर है कि कविता साधारण अनुभव से नहीं उपजती। उसके लिए पर्याप्त संवेदना और विपुल अनुभव संसार चाहिए। यह अनुभव संसार और संवेदना का धड़कता हुआ भूगोल विमलोक तिवारी के पास है। उसे अभिव्यक्ति देने के लिए उन्हें छंदों का ज्ञान भी है और उन शब्दों में अपने सुख दुख को पिरो देने की क्षमता भी। उनके अनेक पंक्तियां साधारण पंक्तियां नहीं है। वे कविता की ऐसी पदवालियां हैं जिनमें समाज का चेहरा देखा जा सकता है। कवि कहता है यह केवल कविता संग्रह नहीं, यह एक निमंत्रण है अपने भीतर झांकने का । ये कविताएं जैसे स्‍वयं की खोज हैं। इस विरस होती संवेदना के समय में जीवन भटकावों का शिकार होता है तो ऐसे समय कविताएं जैसे कवि का हाथ थाम लेती हैं।

विमलोक तिवारी ने संग्रह को यायावर अहसास का नाम देकर अज्ञेय जैसे पुरोधा कवि की याद दिला दी है। अरे यायावर रहेगा याद कह कर अज्ञेय ने अपनी यायावरी को जैसे गौरवान्‍वित किया है। कवि अपने इर्द गिर्द के वातावरण से कविता के सरोकार बुनता और चुनता है। कमरे का दरीचा उसे अपनी एक अलग सी दुनिया के अहसास से भरता है। इस दरीचे से वह अपार आसमान की कल्‍पनाशीलता में उड़ान भरता है। उसे भी औरों की तरह यह दुनिया रंगमंच सी लगती है। जैसे हर किरदार अपनी कहानी जी रहा है। अनेक किस्‍सों से भरी जिन्‍दगी का पन्‍ना पन्‍ना जज्‍बात की लौ में रोशन दिखता है। ये कविताएं भी तो इसी दुनिया के अनेक किरदारों की कहानियां हैं जो लफ्जों में बयां हुई हैं।

विमलोक में पर्याप्‍त अनुभूति, भावुकता और संवेदना का समन्‍वय है। वे बेलगाम सी लगती कल्‍पना की वल्‍गाओं के कवि नहीं बल्‍कि अपनी मुट्ठी में कविता की लगाम नियंत्रित रखते हैं। वे कविता को निरी संवेदना के सहारे नहीं, विचार के रथ पर भी आरूढ़ कर एक यात्रा करते हैं और उसे पढ़ने वालेको भी अपने साथ बहाते चलते हैं। कितने कितने ख्‍याल जैसे उसे आच्‍छादित करते हैं और वह कल्‍पनाओं के रथ पर आरूढ़ जीवन जगत के तमाम प्रत्‍ययों के बीच आवाजाही करता है। उसे एक सूखा पेड़ भी जैसे राहत देता है। अपने अस्‍तित्‍व की अलग पहचान के साथ। इन कविताओं में युवा मन की उदासी है, उछाह है, विरह है, अकेलापन है, प्रतीक्षाएं हैं,हृदय में संवेदना की जलती समिधाएं हैं। जीवन जगत के चर अचर पदार्थ और उसके अहसासात इन कविताओं की पूंजी हैं। यही विकलता है जो उससे कहलवाती है --

मैं हूँ दरिया एक अधूरेपन का

मेरे सभी ख्‍वाबों की मूरत हो तुम।

कुछ कुछ ऐसा ही, यह भी जीने की एक सूरत है/ मन के मंदिर में एक मूरत है। इसी लगाव, इसी बेबाकी से भरी विमलोक की ये कविताएं हर उस युवा मन की कविताएं हैं जो असमंजस में घिरा है, जीवन के वात्‍याचक्र से गुजर रहा है। जहां जीविका की तल्‍ख सचाइयां हैं तो जीवन जीने के उल्‍लास की चिन्‍गारियां भी हैं।

इन कविताओं में दरीचा कवि के लिए राहत बन कर आता है। उनकी एक कविता जैसे फिर फिर दरीचे से उभरते अहसास को फिर से जिन्‍दा कर देती है जब वह कहता लिखता है --

यूं आज दरीचे पे कुछ अजीब लगा

वो आवाज़ जो इस बंगले से हुआ करती थी पहले

या थी फैली हुई इस शहर भर, उन साफ महकती हवाओं में

मैं भागता फिरा और दिखा बहुत अचरज उन आंखों में

शायद मेरे होने से अनजान, परेशान दिखी थी

वो मुझे दिखी थी इस सब दिखावे से अलग।

शायद इस शहर में ये आवाज़ गुमसुम

रहती है या सोते शहर में परेशान

उस चिड़िया की आंखों में थी बहुत सी करुणा

और अफसोस इस सोते शहर के लिए ।

इस कविता के भीतर करुणा का एक निर्मल सोता बहता प्रतीत होता है। कवि वही देखता है तो कवि की आंखों को सच्‍चा और अनिंद्य लगता है। विमलोक इन कविताओं में अपने काव्‍यानुभवों का एक बड़ा और विरल संसार रचते हैं। कविता में वह हर चीज मिलेगी जो एक मनुष्‍य के भीतर मनुष्‍यता की लौ को जलाए रखती है। मॉं को लेकर लिखी गयी ये पंक्‍तियां कितना सुकून देती हैं ---

उसका माथे पे चूमना

फिर मिलने तक समेटना चाहता हूँ

जब जब चौखट पे मां महसूस होती है

घर को लौटना चाहता हूँ ।

कविता इस तरह घर से विलग होने की नहीं, घर लौटने की कार्रवाई का नाम है। विदा होते हुए मां के अश्रुओं के स्‍नात होने के साथ उसके चुंबनों को वात्‍सल्‍य के साथ महसूस करने की कार्रवाई है। एक कवि के रूप में विमलोक तिवारी अपने कार्यभार से वाकिफ कवि हैं जिनकी अंतर्वस्‍तु में संवेदना का खनिज और अयस्‍क है । यही वह पूंजी है जिस पर कवि कल्‍पना और यथार्थकी इबारत लिखता है जिसके लिए किसी प्रामाणिकता की नहीं, हृदय की गवाही चाहिए। विमलोक की ये कवितांए हृदय की गवाहियां हैं।

उनके इस संग्रह को लोग पढ़ें, युवा पाठक इसे अपने हृदय में जगह दें, एक इबादत की तरह लिखी इन कविताओं को प्रार्थना सभा जैसी द्युति हासिल हो, यही कामना है।

—डॉ ओम निश्चल

प्रसिद्ध हिंदी कवि, आलोचक और भाषा विज्ञानी

विश्‍व कविता दिवस, 21 मार्च, 2025

नई दिल्‍ली

[email protected]

Product Details
ISBN 13 9798885752633
Book Language Hindi
Binding Paperback
Publishing Year 2025
Total Pages 108
Edition First
Publishers Garuda Prakashan  
Category Poetry   Indian Poetry  
Weight 110.00 g
Dimension 13.00 x 21.00 x 1.00

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-:पुस्तक परिचय:-

यायावर: अधूरे एहसास-यह मात्र एक कविता संकलन नहीं, अपितु भावनाओं की उस यात्रा का साक्षी है, जिसे हम अनुभव तो करते हैं, पर शब्दों में पूर्णतः पिरो नहीं पाते। यह कृति उन अधूरे एहसासों का स्वरूप है, जो समय के प्रवाह में बहकर कहीं मौन हो जाते हैं।

आज, जब संबंध तात्कालिक हो चले हैं और भावनाएँ क्षणभंगुर, तब यह संग्रह संवेदनाओं के उन अनछुए पहलुओं को स्पर्श करता है, जो मन के किसी कोने में सहेजकर रख दिए गए थे। प्रेम, वियोग, संघर्ष, प्रकृति, समाज और राजनीति की जटिलताओं को स्पंदनशील अभिव्यक्ति देने का यह एक विनम्र प्रयास है।

एक यायावर मन की गहरी संवेदनाएँ, विचारों की अनुगूंज और शब्दों का यह ताना-बाना पाठकों को अपने अनुभवों से जोड़ने का प्रयास करता है-जहाँ हर कविता, एक नई अनुभूति, एक नया प्रतिबिंब बनकर उभरती है।


||प्रस्तावना||

यायावर : अधूरे एहसास

अक्सर जब किसी युवा कवि का संग्रह सामने आता है तो जैसे उस कवि का चेहरा भी सम्मुख आ जाता है। उसके जज्बात, उसके एहसास, उसके सुख, उसकी पीड़ा, उसकी हालत सब कुछ उसकी कविताओं में किसी न किसी रूप में प्रतिबिंबित होती है। ऐसे ही कवि हैं विमलोक तिवारी जिनका संग्रह `यायावर : अधूरे एहसास` यह बताता है कि हर व्यक्ति एक ऐसी यात्रा से गुजरता है जहां उसे बहुत सारे खट्टे मीठे अनुभव होते हैं । संघर्ष के रास्ते होते हैं। मंजिल पर पहुंचने के क्रम में अनेक मोड़ मिलते हैं जिनसे जुड़कर जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार होता है। हर युवा कवि जैसे इस उम्र में प्रकृति से जुड़कर गीत गाता है। प्रेम के गीत, मोहब्बत के गीत, जोड़ने के गीत, टूटने के गीत... और इस क्रम में क्योंकि वह समाज का हिस्सा भी है, एक नागरिक भी है, अपनी युवा आंखों से वह समाज को देखता है तो वहां भी उसे कुछ अधूरापन दिखाई देता है। ऐसी स्थिति में उसकी कविता समाज के क्रिटिक के रूप में भी सामने आती है । विमलोक तिवारी का संग्रह `यायावर अधूरे एहसास ` को पढ़ाते हुए मुझे ऐसा ही कुछ महसूस हुआ ।

मुझे हिंदी के सुधी आलोचक प्रभाकर श्रोत्रिय का यह कहा याद आता है कि किसी भी युवा कवि के पहले संग्रह को फूल की तरह उठाना चाहिए। उसका स्वागत करना चाहिए । उसकी कमियों को नजरअंदाज करना चाहिए। अगर उसमें कसावट कम भी है लेकिन अभिव्यक्ति का विस्तार सम्यक तो उसे उसी रूप में ग्रहण करना चाहिए। कविता साध्य नहीं, साधना है । एक कवि जीवन भर अपनी कविता को साधता है और हर अगली कविता उसके लिए एक चुनौती होती है। हर कविता एक नए संसार के साथ सामने आती है। एक नए अनुभव के साथ सामने आती है। एक नई पारिभाषिक के साथ सामने आती है। जीवन हर बार एक नए पृष्ठ के रूप में खुलता है एक कवि के सामने । हर बार जीवन को संसार को वह नई दृष्टि से देखता है या उसमें नई दृष्टि तलाश कर लेता है।

विमलोक तिवारी ने पग पग पर अपने निजी एहसास के साथ जीवन, समय, समाज और मानव व्यवहार को भी अपनी कविताओं के दायरे में रखा है। उनके साथ स्थाई आलंबन के रूप में प्रकृति तो है ही, जीवन के वे क्षण भी हैं जिन्हें एक कवि ही महसूस कर सकता है।

अपनी 71 कविताओं के इस संग्रह में विमलोक तिवारी ने युवा मन की वह तस्वीर भी सामने रखी है जिस तस्वीर की झलक किसी भी युवक के कवि-मन में देखी जा सकती है । रामावतार त्यागी ने एक कविता में लिखा है :

हम थे उदासियां थी

खामोश गुलमोहर था

हम दर्द भी न गाते तो क्या बयान करते

जाहिर है कि कविता साधारण अनुभव से नहीं उपजती। उसके लिए पर्याप्त संवेदना और विपुल अनुभव संसार चाहिए। यह अनुभव संसार और संवेदना का धड़कता हुआ भूगोल विमलोक तिवारी के पास है। उसे अभिव्यक्ति देने के लिए उन्हें छंदों का ज्ञान भी है और उन शब्दों में अपने सुख दुख को पिरो देने की क्षमता भी। उनके अनेक पंक्तियां साधारण पंक्तियां नहीं है। वे कविता की ऐसी पदवालियां हैं जिनमें समाज का चेहरा देखा जा सकता है। कवि कहता है यह केवल कविता संग्रह नहीं, यह एक निमंत्रण है अपने भीतर झांकने का । ये कविताएं जैसे स्‍वयं की खोज हैं। इस विरस होती संवेदना के समय में जीवन भटकावों का शिकार होता है तो ऐसे समय कविताएं जैसे कवि का हाथ थाम लेती हैं।

विमलोक तिवारी ने संग्रह को यायावर अहसास का नाम देकर अज्ञेय जैसे पुरोधा कवि की याद दिला दी है। अरे यायावर रहेगा याद कह कर अज्ञेय ने अपनी यायावरी को जैसे गौरवान्‍वित किया है। कवि अपने इर्द गिर्द के वातावरण से कविता के सरोकार बुनता और चुनता है। कमरे का दरीचा उसे अपनी एक अलग सी दुनिया के अहसास से भरता है। इस दरीचे से वह अपार आसमान की कल्‍पनाशीलता में उड़ान भरता है। उसे भी औरों की तरह यह दुनिया रंगमंच सी लगती है। जैसे हर किरदार अपनी कहानी जी रहा है। अनेक किस्‍सों से भरी जिन्‍दगी का पन्‍ना पन्‍ना जज्‍बात की लौ में रोशन दिखता है। ये कविताएं भी तो इसी दुनिया के अनेक किरदारों की कहानियां हैं जो लफ्जों में बयां हुई हैं।

विमलोक में पर्याप्‍त अनुभूति, भावुकता और संवेदना का समन्‍वय है। वे बेलगाम सी लगती कल्‍पना की वल्‍गाओं के कवि नहीं बल्‍कि अपनी मुट्ठी में कविता की लगाम नियंत्रित रखते हैं। वे कविता को निरी संवेदना के सहारे नहीं, विचार के रथ पर भी आरूढ़ कर एक यात्रा करते हैं और उसे पढ़ने वालेको भी अपने साथ बहाते चलते हैं। कितने कितने ख्‍याल जैसे उसे आच्‍छादित करते हैं और वह कल्‍पनाओं के रथ पर आरूढ़ जीवन जगत के तमाम प्रत्‍ययों के बीच आवाजाही करता है। उसे एक सूखा पेड़ भी जैसे राहत देता है। अपने अस्‍तित्‍व की अलग पहचान के साथ। इन कविताओं में युवा मन की उदासी है, उछाह है, विरह है, अकेलापन है, प्रतीक्षाएं हैं,हृदय में संवेदना की जलती समिधाएं हैं। जीवन जगत के चर अचर पदार्थ और उसके अहसासात इन कविताओं की पूंजी हैं। यही विकलता है जो उससे कहलवाती है --

मैं हूँ दरिया एक अधूरेपन का

मेरे सभी ख्‍वाबों की मूरत हो तुम।

कुछ कुछ ऐसा ही, यह भी जीने की एक सूरत है/ मन के मंदिर में एक मूरत है। इसी लगाव, इसी बेबाकी से भरी विमलोक की ये कविताएं हर उस युवा मन की कविताएं हैं जो असमंजस में घिरा है, जीवन के वात्‍याचक्र से गुजर रहा है। जहां जीविका की तल्‍ख सचाइयां हैं तो जीवन जीने के उल्‍लास की चिन्‍गारियां भी हैं।

इन कविताओं में दरीचा कवि के लिए राहत बन कर आता है। उनकी एक कविता जैसे फिर फिर दरीचे से उभरते अहसास को फिर से जिन्‍दा कर देती है जब वह कहता लिखता है --

यूं आज दरीचे पे कुछ अजीब लगा

वो आवाज़ जो इस बंगले से हुआ करती थी पहले

या थी फैली हुई इस शहर भर, उन साफ महकती हवाओं में

मैं भागता फिरा और दिखा बहुत अचरज उन आंखों में

शायद मेरे होने से अनजान, परेशान दिखी थी

वो मुझे दिखी थी इस सब दिखावे से अलग।

शायद इस शहर में ये आवाज़ गुमसुम

रहती है या सोते शहर में परेशान

उस चिड़िया की आंखों में थी बहुत सी करुणा

और अफसोस इस सोते शहर के लिए ।

इस कविता के भीतर करुणा का एक निर्मल सोता बहता प्रतीत होता है। कवि वही देखता है तो कवि की आंखों को सच्‍चा और अनिंद्य लगता है। विमलोक इन कविताओं में अपने काव्‍यानुभवों का एक बड़ा और विरल संसार रचते हैं। कविता में वह हर चीज मिलेगी जो एक मनुष्‍य के भीतर मनुष्‍यता की लौ को जलाए रखती है। मॉं को लेकर लिखी गयी ये पंक्‍तियां कितना सुकून देती हैं ---

उसका माथे पे चूमना

फिर मिलने तक समेटना चाहता हूँ

जब जब चौखट पे मां महसूस होती है

घर को लौटना चाहता हूँ ।

कविता इस तरह घर से विलग होने की नहीं, घर लौटने की कार्रवाई का नाम है। विदा होते हुए मां के अश्रुओं के स्‍नात होने के साथ उसके चुंबनों को वात्‍सल्‍य के साथ महसूस करने की कार्रवाई है। एक कवि के रूप में विमलोक तिवारी अपने कार्यभार से वाकिफ कवि हैं जिनकी अंतर्वस्‍तु में संवेदना का खनिज और अयस्‍क है । यही वह पूंजी है जिस पर कवि कल्‍पना और यथार्थकी इबारत लिखता है जिसके लिए किसी प्रामाणिकता की नहीं, हृदय की गवाही चाहिए। विमलोक की ये कवितांए हृदय की गवाहियां हैं।

उनके इस संग्रह को लोग पढ़ें, युवा पाठक इसे अपने हृदय में जगह दें, एक इबादत की तरह लिखी इन कविताओं को प्रार्थना सभा जैसी द्युति हासिल हो, यही कामना है।

—डॉ ओम निश्चल

प्रसिद्ध हिंदी कवि, आलोचक और भाषा विज्ञानी

विश्‍व कविता दिवस, 21 मार्च, 2025

नई दिल्‍ली

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ISBN 13 9798885752633
Book Language Hindi
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Publishing Year 2025
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Category Poetry   Indian Poetry  
Weight 110.00 g
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